राजस्थान की प्राकृतिक वनस्पति

राजस्थान की प्राकृतिक वनस्पति

➡ राजस्थान में लगभग *34,610 वर्ग किमी.* क्षेत्र में विभिन्न प्रकार की वनस्पति मिलती है ।
➡ यह राज्य के कुल क्षेत्रफल का *10.12%* है ।
➡ राजस्थान में सघन वन आवरण क्षेत्र केवल *3.83%* है ।
➡ राजस्थान में प्रति व्यक्ति वन क्षेत्र मात्र *0.03 हैक्टर* है । जो सम्पूर्ण भारत के प्रति व्यक्ति वन क्षेत्र *0.13 हैक्टर* से काफी कम है ।
➡ राजस्थान की वनस्पति यहां की *जलवायु , मिट्टी , भूमि की स्थिति तथा भूगर्भिक इतिहास* से प्रभावित है ।
👉 यहां पर प्राकृतिक वनस्पति *तीन* प्रकार की पायी जाती है : -
*1. वन*   *2. घास*    *3. मरुस्थलीय वनस्पति*

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*राजस्थान में वनों के प्रकार*
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➡ राज्य में *भौगोलिक दृष्टि से तीन प्रकार के* वन मिलते है : -
*1. उष्ण कटिबंधीय कंटीले वन*
*2. उष्ण कटिबंधीय शुष्क पतझड़ वन*
*3. उपोष्ण पर्वतीय वन*

*1. उष्ण कटिबंधीय कंटीले वन : -*

➡ इस प्रकार के वन *पश्चिमी मरुस्थलीय शुष्क व अर्द्ध - शुष्क प्रदेशों* में पाए जाते है ।
➡ *जैसलमेर , बाड़मेर , पाली , बीकानेर , चुरू , नागौर , सीकर , झुंझुनू* आदि जिलों में पाए जाते है ।
➡ इन वनों में *पेड़ बहुत छोटे आकार के* होते है व *छोटी झाड़ियों* की अधिकता होती है ।
➡ इन वनों में *खेजड़ी , रोहिड़ा , बैर , कैर , थोर* आदि वृक्ष व झाड़ियां उगते हैं ।
➡ इन पेड़ों व झाड़ीयों की *जड़े लंबी* होती है तथा *पत्तियां कंटीली* होती है ।
➡ *फोग , आकड़ा , कैर , लाना , अरणा व झड़बेर* इस क्षेत्र की प्रमुख झड़ियाँ है ।
➡ यहाँ कई प्रकार की घास भी पाई जाती है जिनमे *सेवण व धामण* बहुत ही प्रसिद्ध है *धामण घास* दुधारू पशुओं के लिए बहुत ही उपयोगी होती है । जबकि *सेवण* घास सभी पशुओं के लिए पौष्टिक होती है ।

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✍ *2. उष्ण कटिबंधीय शुष्क पतझड़ वाले वन : -*

➡ ये वन राज्य के *50 -100 से.मी.* वर्षा वाले क्षेत्रों में पाए जाते हैं ।
➡ ये वन राज्य के *मध्य , दक्षिणी व दक्षिणी - पूर्वी भागों* में बहुतायत से पाए जाते है ।
➡ विभिन्न प्रकार के वृक्षों की विविधता के कारण इन वनों के कई उप प्रकार है : -

👉 *(क) शुष्क सागवान के वन : -*

➡ ये वन *250 - 450 मीटर की ऊंचाई* वाले क्षेत्रों में मिलते है ।
➡ इन वनों का विस्तार *उदयपुर , डूंगरपुर , झालावाड़ , चितौड़गढ़ व बारां* जिलों में मिलते है ।
➡ इन वनों में सागवान की मात्रा *50 - 75%* जे मध्य मिलती है ।
➡ सागवान के अलावा *तेंदू , धावड़ा , गुरजन , गोंदल , सिरिस , हल्दू , खैर , सेमल , रीठा , बहेड़ा व इमली* के वृक्ष भी पाए जाते है ।
➡ सागवान अधिक *सर्दी व पाला* सहन नहीं कर पाता है अतः इन वृक्षों का विस्तार *दक्षिणी क्षेत्रों* में अधिक है ।
➡ सागवान की लकड़ी *कृषि औजारों व इमारती कार्यो* के लिए बहुत ही उपयोगी है ।

👉 *(ख) सालर वन : -*

➡ ये वन *450 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले पहाड़ी इलाकों में* मिलते है ।
➡ राज्य में इन वनों का विस्तार *उदयपुर , राजसमन्द , चितौड़गढ़ , सिरोही , पाली , अजमेर , जयपुर , अलवर व सीकर* जिलों में मिलता है ।
➡ इन वनों के प्रमुख वृक्ष *सालर , धोक , कठिरा व धावड़* है ।
➡ सालर वृक्ष *गोंद* का अच्छा स्त्रोत है । इसकी लकड़ी *पैकिंग के डिब्बे बनाने* में ली जाती है ।

👉 *(ग) बांस के वन : -*

➡ राज्य के *बांसवाडा , चितौड़गढ़ , उदयपुर , बारां , कोटा व सिरोही* जिलों में इन वनों का विस्तार है ।
➡ बांसवाडा का नाम बांस के वृक्षों की अधिकता के कारण पड़ा ।
➡ बांस के अलावा *धाकड़ा , सागवान , धोकड़ा* आदि वृक्ष भी पाए जाते है ।

👉 *(घ) धोकड़ा के वन : -*

➡ राज्य के रेगिस्तानी क्षेत्र को छोड़कर सभी क्षेत्र इसके अनुकूल है । अतः *राज्य में इन वनों का विस्तार सबसे अधिक* है ।
➡ ये वन *240 - 760 मीटर की ऊंचाई* के मध्य अधिक मिलते है ।
➡ इनका विस्तार *कोटा , बूंदी , सवाई माधोपुर , जयपुर , अलवर , अजमेर , उदयपुर , राजसमन्द व चितौड़गढ़* जिलों में है ।
➡धोक / धोकड़ा के अलावा इन वनों में *अरुंज , खैर , खिरनी , सालर , गोंदल* के वृक्ष भी पाए जाते है ।
➡ धोक की लकड़ी मजबूत होती है । इसे जलाकर इसका *कोयला* बनाया जाता है ।

👉 *(ड़) प्लास के वन : -*

➡ ये वन उन क्षेत्रों में फैले है जहाँ *धरातल कठोर व पथरीला* है ।पहाड़ियों के मध्य जल पठारी धरातल है , वहाँ यह बहुतायत में पाए जाते है
➡ ऐसे मैदानी क्षेत्र जो *कंकरीले है वे जहाँ मिट्टी अपेक्षाकृत कम है* वहाँ भी ये वन मिलते है ।
➡ ये वन मुख्यत *अलवर , अजमेर , सिरोही , उदयपुर , पाली , राजसमन्द व चितौड़गढ़* में फैले हुए है ।

👉 *(च)
➡ इन वनों जा फैलाव *दक्षिणी पठारी* भाग में है । यथा *झालावाड़ , कोटा , बारां , चितौड़गढ व सवाई माधोपुर* जिलों में फैले हुए है ।

👉 *(छ) बबूल के वन : -*

➡ ये वन *गंगा नगर , बीकानेर , नागौर , जालौर , अलवर , भरतपुर* आदि जिलों में मिलते है ।
➡ जिन क्षेत्रो में धरातल में नमी कम है , वहां इनके वृक्षों जी मात्रा कम है ।

👉 *(ज) मिश्रित पर्णपाती : -*

➡ ये वन राज्य के *दक्षिणी पहाड़ी क्षेत्र* में पाए जाते हैं । *सिरोही , उदयपुर , राजसमन्द , चितौड़गढ़ , कोटा व बारां* जिलों में इनका विस्तार अधिक है ।
➡ इन वनों में पाए जाने वाले वृक्ष *आँवला , शीशम , सालर , तेंदू , अमलताश , रोहन , करंज , गूलर , जामुन , अर्जुन* आदि है ।

✍ *3. उपोष्ण पर्वतीय वन : -*

➡ इस प्रकार के वन केवल *आबू पर्वतीय* क्षेत्र में पाए जाते है ।
➡ इन वनों में *सदाबहार एवं अर्द्ध - सदाबहार* वनस्पति होती है ।
➡ यहां वनों की *सघनता* अधिक है अतः *सालभर हरियाली* बनी रहती है ।
➡ इन वनों में *आम , बांस , नीम , सागवान* आदि के वृक्ष पाए जाते है ।
➡ राज्य के कुल वन क्षेत्र के *आधे प्रतिशत* से भी कम भाग पर इस प्रकार के वन पाए जाते हैं ।

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Milan Tomic

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